AMAN AJ

Add To collaction

आर्य और काली छड़ी का रहस्य-48

    अध्याय-16

    समारोह
    भाग-3

    ★★★
    
    देर रात को समारोह खत्म होते ही सब अपने अपने कमरों की तरफ चले गए। सभी के जाने के बाद बस आर्य अकेला ही वहां बचा था। वह ऊपर आसमान में चांद को देख रहा था। चांद को देख कर उसे अपने बाबा की याद आ रही थी। जब वह कोई 7 या 8 साल का था तब उसे उसके बाबा अक्सर कहानियां सुनाया करते थे। सभी कहानियां छत पर चांद के नीचे होती थी। 
    
    सुनाई जाने वाली कहानियां कभी किसी चीज के बारे में होती थी तो कभी किसी चीज के बारे में। कभी वह उड़ती हुई चिड़िया की कहानी सुनाते थे जिसमें चिड़िया खेत में दाना बोने का काम करती थी और कोई कोआ आकर उसके खेतों पर हमला कर देता था। उस कहानी में चिड़ी बड़ी बहादुरी के साथ कोए का सामना करती थी। तो कभी वो उसे उसकी जिंदगी की कहानी सुनाने लग जाते थे। उसे तब तो नहीं पता था यह उसकी जिंदगी की कहानी है, मगर अब उसे इसके बारे में भली-भांति पता चल रहा था।
    
    वह अभी अपने बाबा को याद ही कर रहा था कि आचार्य ज्ञरक वहां आ गए। वह उसके पास आते हुए बोले “कभी कबार जिंदगी हमारे सामने ऐसे मौके इसलिए लाकर खड़ी कर देती है, क्योंकि उसने हमारे बारे में कुछ बेहतर सोच रखा होता है।”
    
    आचार्य ज्ञरक की आवाज सुनते ही आर्य का ध्यान टूटा। आर्य ने सिर झुकाते हुए नमस्ते किया और कहा “जिंदगी अपनी इसी खासियत के लिए तो जानी जाती है। यहां कब क्या हो जाए किसी को नहीं पता होता।” 
    
    दोनों ही ऊपर चांद की तरफ देखने लगे। चांद की ओर देखते हुए आर्य ने पूछा। “अब अचार्य वर्धन की तबीयत कैसी है....?”
    
    “पहले से बेहतर है।” अचार्य ज्ञरक ने जवाब दिया “वेद आचार्य ने कहा है वह तीन या चार दिनों में पूरी तरह से ठीक हो जाएंगे।”
    
    “यह तो अच्छी खबर है। आचार्य वर्धन आश्रम की नींव है, वह जितनी जल्दी ठीक हो उतना ही बेहतर। वैसे आपने उनको मेरे बारे में बताया, मतलब यह बताया कि मैंने काली छड़ी को खत्म कर दिया।”
    
    “हां मैंने उनको कब का ही बता दिया। वह यह बात सुनकर पहले परेशान हुए थे, बोल रहे थे मुझे खत्म हो लेने देते। इसके बाद उन्होंने इस सच्चाई को स्वीकार कर लिया।”
    
    “उन्होंने इस बारे में बात नहीं की, कि आखिर अब आगे क्या होगा। मतलब अगर अंधेरी परछायों को इस बारे में पता चलेगा तो वह क्या करेगी? क्या वह किसी बड़े हमले की तैयारी करेंगी?”
    
    “शायद। उनके इरादे तो ऐसे ही होंगे। काली छड़ी के खत्म हो जाने के बाद उनकी ताकत कम होने का असर शैतान पर पड़ेगा, जो कि यहां नहीं है, जबकि अंधेरी परछाइयां वह शायद इस बात को लेकर ज्यादा परेशान ना हो। उनका काली छड़ी हासिल करने वाला मकसद तो यूं ही रहेगा, क्योंकि उन्हें शैतान को लाने के लिए काली छड़ी की रोशनी की आवश्यकता है। साथ में मौत की छड़ी की रोशनी की भी। उन्हें दोनों ही छड़ीयों की रोशनी चाहिए।”
    
    “और हम उनकी अभी भी हिफाजत करते रहेंगे।” आर्य आत्मविश्वास के साथ बोला। “मतलब यह लड़ाई अभी काफी लंबी चलने वाली है। अभी बस छोटे-छोटे खेल हो रहे, जबकि बड़े खेल तो शुरू होने बाकी है।”
    
   आचार्य ज्ञरक के चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आ गई। “अगर तुम ना होते, मतलब तुम भविष्यवाणी वाले लड़के ना होते तो शायद हम इस मुद्दे को लेकर गंभीर हो रहे होते। मगर तुम्हारे आ जाने के बाद हमें अब इन सब की चिंता नहीं रही। तुम्हें पता है भविष्यवाणी में तुम्हारे बारे में क्या कहा गया है, यह कि तुम्हारे सामने हर एक मुसीबत छोटी पड़ जाएगी। खुद शैतान को भी तुम्हारे आगे झुकना पड़ेगा।”
    
    “मैं तो अभी तो इस बारे में क्या ही कहुं...” खुद के लिए इतने बड़े शब्द सुनकर आर्य शर्मा रहा था। “बस इतना ही कह सकता हूं कि जो होगा देखा जाएगा।” इतना कहकर आर्य ने गहरी सांस ली और उसे बाहर की तरफ छोड़ा।
    
    “तुम अपने भविष्य के लिए क्या सोच रहे हो..?” अचार्य ज्ञरक बात बदलते हुए बोले “आज मैंने और आचार्य वर्धन ने भी इस बारे में चर्चा की थी। वह कह रहे थे अगर तुम अलग हो तो हमें तुम्हें प्रशिक्षित करना चाहिए। आने वाली बड़ी मुसीबतों के लिए यह जरूरी है कि तुम पूरी तरह से प्रशिक्षित हो जाओ।‌ तुम्हें अच्छी तलवार चलानी सीखनी होगी, लड़ाई की गुप्त कलाओं का ज्ञान भी लेना होगा, फिर पढ़ाई लिखाई भी तुम्हारे लिए आवश्यक है।”
   
    “हिना से भी मैंने इस बारे में बात की थी।” आर्य हिना वाली बात को याद‌ कर रहा था “उसने कहा था वह खुद तो जादुई कला में दूसरी चीजें सीखने वाली है। फिर मैंने उससे कहा था कि मैं तलवारबाजी में ध्यान दूंगा।”
    
    “तो मतलब तुम यह सब सिखने के लिए तैयार हो।”
    
    “मेरी तरफ से इसके लिए सदैव हां ही रहेगी। अब मेरे आगे पीछे तो कोई है नहीं, सिवाय इस आश्रम के। फिर मुझे आगे चल कर अपने बाबा की मौत का बदला भी लेना है। उन सबके लिए जरूरी है मैं खुद को तैयार करूं। अगर मैं खुद को तैयार करके रखुगां, तभी खुद को बदला लेने योग्य कर सकूंगा।”  
    
    आचार्य ज्ञरक उसकी ओर मुड़ें और उसके कंधे को थपथपाया। “भगवान करे तुम जो भी सोच रहे हो वह सब सच हो जाए। तुम्हारी हर वह इच्छा पूरी हो, जिसके लिए तुम कामना करते हो। तुम हमारे लिए उम्मीद हो, हमारी आखिरी उम्मीद, और बस ऐसे ही हमारी आखिरी उम्मीद बनें रहना।”
    
    इतना कहकर आचार्य ज्ञरक वहां से निकल गए। उनके जाने के बाद आर्य ने अपने हाथों को अपनी पेंट की जेब में डाला और ऊपर चांद की तरफ देखते हुए कहा।
    
    " लोगों का कहना है कि मैं उनकी आखिरी उम्मीद हूं पर मैं इस चीज को नहीं मानता। उम्मीद कभी आखरी नहीं होती। यह सफर है जो ऐसे ही चलता रहेगा। मैं इसका एक मुसाफिर हूं जो बिना मंजिल के आगे बढ़ने के लिए जाना जाएगा। मेरा कोई इतिहास नहीं, मेरा कोई भविष्य नहीं, बस जो भी है यही है। मैं अलग हूं, क्यों और कैसे, नहीं जानता, और ना ही मुझे जानना है। क्योंकि इन सब सवालों के जवाब आने वाले वक्त में मिल ही जाएंगे। मुझमें ताकत की कोई कमी नहीं पर अभी इसे संभालना नही आता। खैर वह सब तो सीखा जा सकता है उसका कुछ कह नहीं सकते। आगे का सफर मजेदार रहने वाले हैं। उफ्फ यह लंबे सफर, और आने वाली कहानी..... इंतजार रहेगा मुझे... अपने हर एक सफर का.... अपनी हर एक कहानी का।"
    
    आर्य की आंखों में चांद की चमक चमक रही थी। जो कि उसका इस कहानी का आखिरी दृश्य था। आर्य.... लोग इसे हमेशा हमेशा के लिए याद रखने वाले हैं।
    
    ★★★
    
    
    
 
    
    
    
    
    
    
    
    

   8
0 Comments